Friday, April 14, 2023

नैनीताल और नीम करौली बाबा कैंची धाम ट्रिप 2023

 बहुत समय पश्चात ब्लॉग कर रहा हूं इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं, परंतु व्यस्तता के कारण अब मुझे तनिक भी समय नहीं मिल पाता है। 


मैनें अपने मुख्य व्यवसाय , दांत उचाड़ने के अलावा अतिरिक्त आय हेतु 2 नए स्रोतों को स्थापित किया है। पहला तो ओकीनावा इलेक्ट्रिक स्कूटर की एजेंसी है, और दूसरा यूनिवर्सल स्टोर भी खोला है, जहां पर मैने आउवा का सीसीटीवी कैमरा भी लगाया है जिसे मैं संसार में कहीं से भी सजीव देख सकता हूं, हालांकि वह बात अलग है कि मैं अपना गांव छोड़कर कहीं भी नहीं जाता हूं।  

यह दोनों व्यवसाय ही बहुत अच्छे से चल रहे हैं, मैं दिल्ली से ₹700 में स्मार्ट वॉच लगाता हूं और उन्हें सरलता पूर्वक यहां पर ₹3500 में बेच देता हूं, यहां के लोग मूर्ख हैं , मुझे ऑनलाइन के बारे में कुछ भी नहीं पता है अन्यथा यही घड़ियां ऑनलाइन 1200 से 1500 में आसानी से मिल जाती हैं।

ओकिनावा की भी हर 2 दिन में एक दो गाड़ियां निकलती रहती है। अब मेरी जेब में हमेशा ही पैसा भरा होता है, कॉलेज के समय की तरह नहीं। 

मुख्य गल्ला बंद करने के बाद मैं सीधे अपनी होंडा शाइन उठाकर 180ml दवा खरीदता हूं और उसके साथ तीन उबले हुए अंडे जिन पर कटा हुआ प्याज धनिया थोड़ा सा चाट मसाला और हरा मिर्च डाला हुआ रहता है, का सेवन करता हूं। परंतु मेरा विशालकाय पेट इतने से न भरता है, इसके पश्चात मैं कम से कम एक आलू टिक्की भी pep लेता हूं। जब अंडा नहीं खाना होता है तो मैं रिकॉर्ड तोड़ तो फुलकियां एक बार में गपक जाता हूं।



मार्च के महीने में तिवारी भाई ने फोन किया और मुझे उसने जबरन नैनीताल में स्थित नीम करोली बाबा के दरबार में जाने का आग्रह किया। आदत अनुसार मैंने उसे पहले तो मना करना चाहा, परंतु उसके दबाव देने पर मैंने आखिरकार हामी भर ही दी। परंतु वह भी काफी काइन्यां व्यक्ति है, उसने मुझसे टिकट के पैसे मांग लिया, और हग मूत कर मैंने उसे ₹2000 यूपीआई के माध्यम से भेज दिए, और उसने उसी दिन मेरा भी आरक्षण करवा दिया । मैंने जानबूझकर इस बात का जिक्र मनु भैया से किया तो वह भी चलने को तैयार हो गए और उन्होंने स्वतः ही खुद का आरक्षण करवा लिया।  



23 मई को हमारा बाघ एक्सप्रेस में आरक्षण हुआ था, मुझे गोरखपुर से चढ़ना था और तिवारी को लखनऊ से। मन्नू भैया ने गलती से 1 घंटे पहले वाली एलजेएन एमकेजीएम एक्सप्रेस मे टिकट कटा लिया ।


इतना सब होने के बावजूद मुझे तिवारी भाई पर बिल्कुल भी यकीन नहीं था, मुझे लग रहा था कि वह मुझे मूर्ख बना कर ट्रेन में बैठा देगा और स्वयं नहीं जाएगा । 6 अप्रैल को मैंने तिवारी से जाना है कि नहीं यह बात कन्फर्म की। 



7 तारीख को मैं ढेर सारी लिट्टी और ठेकुआ लेकर ट्रेन में सवार हो गया। मेरे साथ मेरे परम मित्र श्री धनंजय पटवारी जी भी थे, जिनका की फोटोग्राफी एवं वीडियोग्राफी का काम है, और वह मेरे क्लीनिक में ज्यादातर बैठे रहते हैं। वह मेरे ही गांव से हैं। 


हमारी ट्रेन शुरू में तो थोड़ा लेट थी परंतु लखनऊ बिल्कुल ठीक समय पर पहुंच गई, जो कि रात के 12:30 था। मन्नू भैया की एलजेएम केजीएम एक्सप्रेस रात 11:30 बजे ही चल निकली थी। उनके हाथों मैंने तिवारी तक 12 आलू के पराठे पहुंचाएं और दो छोटी कोल्ड ड्रिंक जिसमें से एक में आधा क्वार्टर 8 पीएम मिला हुआ था। 



सही समय पर तिवारी भाई हमारे कंपार्टमेंट में आ गया, मुझे नीचे की 9 नंबर को लोअर बर्थ मिली थी जबकि तिवारी भाई को 11 नंबर अपर बर्थ। धनंजय पटवारी की सीट कहीं अन्यत्र थी लेकिन वह देर रात तक हमारे ही साथ बैठे हुए थे। मैंने तिवारी को यह बता दिया था कि मेरे साथ मेरे परम मित्र भी आ रहे हैं। दरअसल धनंजय पटवारी का भतीजा एक होटल में मैनेजर के तौर पर कार्य करता है और उसे कंपनी की तरफ से एक फोर व्हीलर और तीन आईफोन मिले हुए हैं, और उसका काम फोन पर मुख्य रूप से हां जी हां जी जी नहीं अभी खाली नहीं है सिर्फ इतना बोलकर हो जाता है। उसने ही हम पांच लोगों के लिए वहां पर मुफ्त में ठहरने का प्रबंध किया था। 


बाघ एक्सप्रेस सुबह सही समय पर पहुंचा रही थी। हमारा टिकट तो काठगोदाम तक का था लेकिन मैंने तिवारी भाई पर जोर डालकर हल्द्वानी में ही उतरने को कहा। तिवारी भाई का पहले यह प्लान था कि पहले काठगोदाम से नैनीताल तक टैक्सी अथवा बस में जाएंगे, नैनीताल में होटल लेकर वहां टट्टी और फ्रेश होंगे और खाना खाकर 12:00 से 1:00 बजे तक कैंची धाम के लिए रिटर्न टैक्सी बुक करके निकलेंगे। लेकिन मैंने कहा कि कहां उल्टा नैनीताल जाओगे, जो करने आए हैं पहले वही चलो, वही चलकर कहीं नहा लिया जाएगा और वहां से निपट कर तब होटल चलते हैं। जबकि मुझे घंटा कुछ पता नहीं कि नैनीताल किधर है कैंची धाम किधर है काठगोदाम किधर है, और मुझे यह तक नहीं पता था की कैंची धाम जाने के लिए नैनीताल से लगभग होकर ही जाना पड़ता है। 


तो हल्द्वानी में हमने 15 सो रुपए में एक इको गाड़ी बुक की जोकि सिर्फ कैंची धाम ड्राप के लिए थी। हमारा यह प्लान था कि वहां से शेयरिंग टैक्सी से वापस नैनीताल चले जाएंगे। 



हल्द्वानी मैं ही रास्ते में एक बढ़िया दुकान देख गई, जहां सर हमने दो खंभा गोल्फर शॉट नाम की दवाई ली। डिब्बों पर मूल्य तो ₹970 लिखा था लेकिन पुराना स्टॉक होने के कारण उसने हमें सिर्फ ₹850 में एक बोतल दवा दे दी , हमने कुल 2 बोतल दवा ली थी।


रास्ते में ही टैक्सी वाले भैया ने अपनी कमीशन वाली चाय नाश्ता की दुकान पर गाड़ी रोकी। मैं तो कुछ भी लेना नहीं चाहता था क्योंकि मेरे पास रात के बचे हुए चार पराठे और लिट्टी थी, परंतु तिवारी भाई ने जबरन प्याज के पकोड़े और चाह मंगवा दी, जिस से की काफी खर्चा हो गया।


भवाली तक पहुंचते पहुंचते हमें काफी जाम मिला था, और वहां से गाड़ियां रेंग रेंग कर आगे बढ़ रही थी। ड्राइवर पछता रहा था की किसका मुंह देख कर मुझे टैक्सी में बिठाया।   

5 घंटे जाम में फंसे रहने के बाद हम किसी तरह कैंची धाम पहुंचे। 


धनंजय भाई को बहुत तेज मुतास लगी थी,तो वह काफी दूर जाकर एक होम स्टे में मूत कर आए। फिर हम सबने वहां नदी में स्नान किया और प्रसाद लेकर दर्शन करने निकल पड़े। उस दिन भीड़ का यह आलम था कि सारा प्रसाद खत्म हो चुका था। दर्शन बहुत अच्छे से हो गए जिसमें हमारा कुल मिलाकर 5 मिनट लगा होगा। 


फिर वहां से हमने कुछ यादगार चीजें खरीदी और वापसी के लिए टैक्सी ढूंढने लगे। पर कोई टैक्सी वाला खाली नहीं था, क्योंकि वहां पर सभी लोग नैनीताल या कहीं से भी रिटर्न कब बुक करके ही आते हैं। हमने कई बस वालों से भी इल्तजा की लेकिन कोई मादरचोद बैठाने को तैयार ना हुआ। मैंने उन सब को मन ही मन खूब गरी आया और काफी दूर पैदल चलने के बाद एक मोड़ पर आकर मैं खड़ा हो गया। खड़े-खड़े 2 घंटे बीत गए अंधेरा होने लग गया था, सारे लोग जा चुके थे जाम भी लगभग लगभग खुल चुका था, ढाबों पर सारी सामग्री खत्म हो चुकी थी और चाय भी नहीं मिल पा रही थी। मौसम में अब ठंडक भी शुरू हो चुकी थी। 


पिछले प्रयासों में कोई भी सफलता ना मिलते देख मैं काफी हताश और निराश हो चुका था। फिर तभी हमें एक आर्मी का ट्रक दिखाई दिया, हमने उनसे आगे छोड़ने तक की विनती की। वह नैनीताल तक ही जा रहा था लेकिन उसने बताया कि उसे बैठाने की अनुमति नहीं है। हम सारे फिर से लाड़ चाट कर रोड के किनारे खड़े हो गए। मुझे पूरा यकीन था कि तिवारी मुझे गरिया रहा होगा । 


फिर तभी नीम करोली बाबा का चमत्कार हुआ और आर्मी वाले ट्रक ने आगे बढ़कर ब्रेक लगाया और हमें ट्रक में चढ़ने को कहा। हमने आव देखा न ताव और फटाक से ट्रक में चढ़ने लगे। मैं पीठ पर बैग लादकर ही चढ़ने की कोशिश कर रहा था, पर मैं अपने भारी वजन को तो खुद ही नहीं संभाल पाता हूं तो बैग को कहां से संभाल पाता। तिवारी भाई और मनु भाई ने हाथ पकड़ कर मुझे चीनी के बोरे की तरह ट्रक के अंदर खींचा। तिवारी भाई तो ट्रक मैं बिल्कुल आगे की तरफ जा के बैठ गए क्योंकि वहां पर छठ के काम लगते हैं, लेकिन मैं तो ट्रक के पिछले शॉकर पर ही बैठा था क्योंकि मुझे इसका उछल उछल कर सवारी करने में बड़ा ही मजा आता है।



नैनीताल के नजदीक पहुंचते-पहुंचते रात के 8:30 बज चुके थे और आर्मी वालों की ट्रक रिस्ट्रिक्टेड एरिया में जा रही थी जहां पर उन्होंने हमें उतार दिया। मैंने उस मैनेजर से पता किया कि होटल का नाम क्या है और गूगल मैप पर डाल दिया। वह होटल वहां से 3.4 किलोमीटर दूर था। मरता क्या न करता, हम चलने लगे पहाड़ी रास्तों पर बिल्कुल सुनसान, काफी देर में ही गाड़ियां गुजर रही थी और बिल्कुल घुप अंधेरा था।

तभी एक बोलेरो वाले ने मुझसे पूछा कि पैदल क्यों जा रहे हो आगे छोड़ दूं क्या, लेकिन उस समय मेरा दिमाग घास चरने गया था और मैंने उसे कह दिया कि नहीं भैया हम चले जाएंगे। जब मैंने यह बात तिवारी को बताई तो ना सिर्फ उसने बल्कि सभी ने मुझे बहुत लताड़ लगाई, हालांकि मेरी मोटी चमड़ी पर ऐसी लता रोका लेश मात्र भी फर्क नहीं पड़ता है


 मुझे बताया गया था कि होटल मॉल रोड पर है, मन्नू भैया ने बोला कि हां मुझे तो लोकेशन भी याद है एकदम तल्लीताल के बगल में ही है। लेकिन जब वहां पर हम पहुंचे और एक दुकान पर पता किया तो उन आंटी ने बताया कि यह तो मल्लीताल में है। हमें पूरी माल रोड पीठ पर भारी बैग लटकाए पैदल चलकर जाना था, सोच कर ही हम लोग के दगी जा रही थी। थोड़ा दूर चलने के बाद तिवारी लोग को एक रिक्शा मिल गया और वह लोग भन्न से आगे निकल गए। मैं यह देखकर बहुत ही झटुआ गया क्योंकि तीन लोग होने के कारण एक रिक्शे पर इतने भारी लोग आ नहीं सकते थे, और दूसरा रिक्शा मिल नहीं रहा था। किसी तरह मैं पटरे पर गांड़ टिका कर आया, और मॉल रोड के खत्म होते होते चढ़ाई शुरू हो गई तो रिक्शा वाला हमें वहां छोड़कर चलता बना। तभी तिवारी लोग का फोन आया कि वह लोग होटल पहुंच चुके हैं, यह सुनकर मेरी झांटे प्रज्वलित हो गईं। किसी तरह हम होटल पहुंचे, लेकिन रॉयल हेरिटेज जैसे 3 स्टार होटल को बाहर से देखकर मेरी बांछें खिल गई। रिसेप्शन क्षेत्र में हमने कद की कार्यवाही पूरी की, मैनेजर की बात वहां के रिसेप्शनिस्ट से करवाई, तिवारी ने पूछा भी कि सब कुछ फ्री है ना, तो मैंने उसे आश्वासन दिया कि हां बिल्कुल फ्री है और रात का डिनर और सुबह का नाश्ता भी इंक्लूड है। मैंने उसे यह भी बताया कि इसी कंपनी का जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के अंदर एक रिजल्ट है जहां 2 महीना पहले प्रवीण अपनी फैमिली के साथ 5 दिन रह कर आया था और उसे एक चवन्नी भी नहीं देनी पड़ी थी। यह सब सुनकर सब बहुत खुश है। 

अंततः ब्रिटिश कालीन होटल में हमारा कमरा मिल गया। वह एक स्वीट था, जिसमे 2 बड़े कमरे आपस में जुड़े हुए थे और संडास भी 2 थे पीछे वाले कमरे में, जिसमे तिवारी लोग रुके थे। मन्नू भैया बाहर जाकर खाने का इंतजाम देखकर आए और उन ने बताया कि वह तो गजब बूफे लगा हुआ है और मुर्गा बकरा नल्ली सब कुछ है। यह सब सुनकर सब बहुत ही खुश हुए, सिर्फ तिवारी को छोड़कर, क्योंकि वह आजकल शाकाहारी होने का रोल प्ले कर रहा है। 

सब ने कहा कि जल्दी जल्दी से दवाई की बोतल खोलो और उसे खत्म कर दो क्योंकि बुफे डिनर सिर्फ रात 10:30 बजे तक खुला रहता है। डेढ़ घंटे के अंदर हमने सारी दवाई खत्म कर दी और सब मस्त हो गए। 


मैं बाकी लोगों से पहले ही डिनर हॉल में पहुंच गया, और इतनी देर में मैंने 4 बकरे के पीस और 3 रोटियां निपटा दी। कुछ देर बाद तिवारी ने मुझे पकड़ लिया। जब यह लोग आए तब डोंगे में पीस नहीं थी सिर्फ ग्रेवी बची थी, और jcp साई सब ने उसे लूट लिया। सब ने कहा कि रोटी जाए मां चुदाने, तब तक सूखा पीस ही पेल लो। मेरी थाली हड्डियों से लद चुकी थी, मैने मुर्गा भी लिया पनीर भी लिया और बकरा तो था ही। सब निपटाने के बाद मैने सिवई ली, और तभी देखा की आइस क्रीम भी आ चुकी है। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, मैने सेवई के ऊपर ही 4 स्कूप आइसक्रीम डाल दिया। आइसक्रीम और सेवई मिलकर न जाने क्या बन चुका था।


मेरी खुराक तो इतनी है कि इतना खाना मैं 2 बार खा सकता हूं। मैंने सुबह ही अपनी फोटो फेसबुक पर डाल दी थी ताकि सारी लड़कियां देख सके और लाइक करें। प्रवेश ने तिवारी को फोन करके कहा कि बीपीनवा तो एकदम योगी बाबा का सांड लागत बा, गजब सारे का मुंह इतना बड़ा हो गया है। और यह सच भी है मेरा मुंह पहले से डबल हो चुका है।



खाना खाकर आने के बाद तिवारी और बाकी लोग टट्टी करने चले गए। एक ने गूगल पर सर्च करके पता किया कि वह कमरा 5200 में उठता है, और दो कमरों का मूल्य ₹11000 होगा। यहां पर महत्वपूर्ण बात यह है कि ₹11000 के मूल्य का कोई कमरा होटल में नहीं दिखा रहा था, यह बात उसने खुद ही जोड़ कर बनाई थी। उसका वास्तविक मूल्य क्या था यह मुझे नहीं पता था।



जब वह भी टट्टी करने चला गया, तो मेरे छोटे से दिमाग में एक बड़ा सा प्लान आ गया। मैंने उन दोनों को बताया कि जो मैनेजर है उसे कुल किराए का 50% अपनी सैलरी से देना पड़ता है, मुझे इस बात का भी इल्म नहीं रहा कि पहले ही मैं सारा सच बता चुका था। मुझे ऐसा वहम है कि मैं बहुत होशियार हूं। मुझे ऐसा लगता है कि मैं जो कि 10 साल से रोज दवा पीकर घर जाता हूं और उसके पश्चात भी मेरे घर वाले लोगों को यह नहीं पता है।


मैंने कहा कि सब लोग एक ₹1000 दे देंगे तो हो जाएगा, और दिखाने के लिए मैंने तुरंत ही धनंजय तिवारी के अकाउंट में ₹1000 डाल दिए। मेरा प्लान सफल हो चुका था। अटपटा तो तिवारी लोग को भी लगा लेकिन वह भी क्या करते, जब कोई व्यक्ति बेईमानी और नीचता पर उतर आता है तो सज्जन पुरुष ऐसे लोगों से बचके ही रहते हैं। लेकिन मुझे मित्रों से धोखा करके झांट फर्क नहीं पड़ता, पैसा ही मेरा सब कुछ हो चुका है , वो ही मेरा खुदा है, संबंध जाएं मां चुदाने। मुझे रोज अंडा बकरा और दवाई मिल जाए , जीवन में मुझे बस इतना सा ख्वाब है। 


मित्रों से कपट करने के बाद मैं बड़े ही चैन की नींद सोया। सुबह सभी लोग जल्द ही उठ चुके थे और 7 बजे से पहले ही सारे नित्य कर्मों से विमुक्त हो चुके थे। हमें मुफ्त वाले नाश्ते की प्रतीक्षा थी। लेकिन यह मुफ्तखोरी आगे क्या गुल खिलाने वाली थी वह तो आप पढ़ेंगे ही आगे। 


हमने अंदर बाहर सभी जगह जाकर तरह-तरह की फोटो खिंचाई, जिन्हें मैं फेसबुक पर पोस्ट करके भौकाल बनाने वाला था। उन पर बैच की लड़कियों द्वारा कमेंट और लाइक आना था , जो मेरे जीवन का दूसरा मकसद है , पहला तो खाना खाना ही है।


ठीक 8:30 ब्रेकफास्ट शुरू हो गया। मैंने वहां प्लेट भर के पोहा लिया, एक कटोरी भर के सांभर, दो पीस मेंदू वडा, स्प्राउट्स, 2 पीस ब्रेड में ढेर सारा पिघला हुआ मक्खन भी लगा लिया। इसके पश्चात मैं कुर्सी मेज पर बैठकर आराम से इतना नाश्ता खा रहा था, किताबी पता चला कि पराठा भी है। तो मैंने पहली खेप निपटा कर पराठे के ऊपर अटैक किया, और चार पीस पराठा, आधा कटोरी भर के अचार, और तीन उबले अंडे ले लिए । इन्हें मैं लगभग लगभग निपटा ही चुका था कि पता चला कि आमलेट भी है। मैं उठ कर गया और एक आमलेट लेकर आया और साथ में चार पीस ब्रेड पर पेलम पेल मक्खन लगाकर भी रख लिया। मेरा आमलेट खत्म होने वाला था तभी मुझे वेटर दिखा तो मैंने उससे एक और आमलेट और दो पीस पराठे मंगा लिया। फिर जाकर मैंने चाय ले ली।



इतना आधा पेट नाश्ता करने के बाद मैने होटल में से चेक आउट करने के लिए सबको तैयार कराया और सारा सामान लेके हम रिसेप्शन पर पहुंच गए। वहां पर हम लगभग 150 रुपए देने को कहा गया जिसमें पानी को बोतलों का शुल्क लिया गया था । मुझे तो डर याद था कि जो 50% वाली बात मैंने बोली है वह कहीं रिसेप्शन पर पकड़ी ना जाए, क्योंकि अगर 50% जैसा कुछ होता तो वह वही रिसेप्शन पर ही अदा करना होता। लेकिन मेरा यह भाग्य था कि ना ही रिसेप्शनिस्ट ने कुछ कहा ना ही तिवारी लोग को इस बाबत कोई शक हुआ। फिर हम लोग मल्लीताल से मॉल रोड पर चहल कदमी करते हुए तल्लीताल स्थित बस अड्डे पर पहुंच गए और वहां पर टैक्सी देखने लगे।


परंतु कोई भी टैक्सी 1500 से नीचे जाने में तैयार ना थी, और उस पर भी तुर्रा यह को 5 मोटी सवारियां बिठाने को गाड़ी तो और भी महंगी पड़ रही थी। तभी हमें सरकारी बस दिखाई दी और सब उसमें बैठ गए। मात्र ₹80 में हम नैनीताल से हल्द्वानी उतर गए थे। वहां से हमने उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस पकड़कर बरेली जाने का निश्चय किया। नियत समय में हम लोग बरेली पहुंच गए। पहले तो हमने सोचा था कि बरेली से एसी बस पकड़ कर लखनऊ पहुंच जाएंगे, परंतु मन्नू भैया ने कहा कि ट्रेन से चलते हैं ट्रेन सिर्फ तीन 3:30 घंटे में लखनऊ उतार देगी जबकि बस 5 घंटों से कम किसी हालत में नहीं लेगी। बात तो सही थी।


तिवारी भाई ने मोबाइल पर सब का डिजिटल टिकट खरीद दिया। सद्भावना एक्सप्रेस आई और हम सब उसके स्लीपर डिब्बे में चढ़ गए। ट्रेन बिल्कुल ठसाठस भरी हुई थी, हम सभी दरवाजों के पास खड़े थे। तिवारी भाई और मन्नू भैया टीटी से सेटिंग कर सीट लेने के चक्कर में लगे हुए थे। ₹80 प्रति पैसेंजर के हिसाब से हम से लेकर टीटी ने हमें S2 डिब्बे में दो बर्थ अलॉट कर दी, लेकिन हमें वह बर्थ शाहजहांपुर से मिलनी थी। हम सभी लाड़ चाट कर 2 घंटे ट्रेन में यूं ही खड़े रहे। ट्रेन भी बिल्कुल झांटू तरीके से चल रही थी। हर स्टेशन पर रुक रही थी, जहां स्टॉपेज नहीं था वहां भी रुक रही थी। तब तिवारी ने कहीं से पता किया कि इस रूट पर ट्रक का कुछ काम चल रहा है जिसके कारण सभी ट्रेनें विलंब से चल रहे हैं। हम सभी पूर्णता झंड हो चुके थे। जिस चलाकर में हम लोग ट्रेन में चढ़े थे वह फेल हो चुकी थी। उल्टा हम लोग की गांड मरा गई। शाहजहांपुर से हम लोग सीट पर बैठ गए और तब कुछ आराम महसूस हुआ। मैंने तो पैसे बचाने की पूरी कसम खा रखी थी, इसलिए ट्रेन में बिकने वाला कोई भी सामान मैंने नहीं खाया। 


ट्रेन में मैं सभी साथ के लोगों को अपना qr-code दिखा कर भीख मांग रहा था, जिस पर तिवारी ने मुझे बहुत लताड़ा। उसने कहा कि भोसड़ी वाले एकदम भिखमंगा हो गए हो क्या।


अंततः लगभग 8:30 बजे ट्रेन ने हमें चारबाग प्लेटफार्म नंबर 4 पर उतार दिया। हम सब ट्रेन से उतरकर तेजी से बाहर की और भागे। तिवारी भाई को उसी ट्रेन से आगे जाना था इसलिए वह बाहर प्लेटफार्म पर गए और जनरल की टिकट ले लिए। मैं और मनु भैया और मेरे साथ में आए हुए धनंजय पटवारी बाहर निकल गए। तिवारी को विदा करते हुए भी मैंने उससे पैसे मांग ही लिए।



या तो कुछ भी नहीं था, वहां से निकलने के 1 घंटे बाद मैंने तिवारी को फोन किया, मैंने उससे कहां पहुंचे हो, ट्रेन में सीट मिली कि नहीं, यह सब कुछ भी नहीं पूछा बल्कि सिर्फ इतना कहा कि भाई पैसा भेज दो। वह काफी गुस्सा कर फोन काटा और उसने पैसा मेरे बड़े से मुंह पर फेंक कर मारा। (यूपीआइ द्वारा)


दोस्ती मित्रता जाए लाडे में, बेईमानी और फ्रॉड का पैसा ही सब कुछ है मेरे लिए अब तो। उसके पश्चात मैने तिवारी से झांट कोई बात नहीं की, पर बाकी लोगों से मैं रोज एक बार पैसे मांग ही लेता हूं, बेशर्म होकर। 


इतना बड़ा ब्लॉक लिखते लिखते अब मैं थक चुका हूं इसलिए अब मैं यह ब्लॉग रख रहा हूं अगर कोई बीमारी ना हुई और मैं स्वस्थ रहा तो भविष्य में जरूर मिलूंगा गुड बाय। 

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